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निधि एंड द सीक्रेट आइडेंटिटी भाग 4

12


    
    थंडर लाइंस, और मुश्किलों का आना।
    
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    रात को निधि अपने कमरे में चुपचाप बैठी थी। उसके पास एक बल्ब था जिसे वह बार-बार जगा और बुझा रही थी। साफ है इस वक्त वह किसी के बारे में सोच रही थी
    
    वह उतना भी बुरा नहीं जितना वह दिखता है। अपने देश के लिए उसके दिल में अब भी जज्बात है, भले ही आज वह सीरिया का साथ दे रहा है लेकिन अगर उसको सही तरीके से ट्रीट किया जाए तो वह इंडिया का भी साथ दे सकता है। ... वह बुरा नहीं ....तेरह साल की उम्र से वहां रह रहा है....उसके बाद एकेडमी ने भी उसे कांटेक्ट नहीं किया.... इतने साल एक ही देश में रहने के बाद उससे देशभक्ति तो जुड़ ही जाती है। उसके दिमाग में अभी सीरिया को लेकर मोह माया है..... उसे तोड़ा जा सकता है। विनम्र जैसे लोगों को एजेंसी के लिए ही काम करना चाहिए............."
    
    कुछ देर विनम्र के बारे में सोचने के बाद वह खड़ी हुई और उसने पोस्टर की आड़ी टेढ़ी लकीरे  निकाल ली। "इनका भी रहस्य समझ में नहीं आ रहा...... उन्हें यह लकीरें चाहिए पर क्यों..... आखिर ऐसा क्या खास है इसमें। अगर इसके बारे में सही तरीके से जानना है तो मुझे अंकल से बात करनी चाहिए...."
    
    निधि ने दरवाजा खोला और बाहर वकार अहमद के सामने कुर्सी पर जाकर बैठ गई।
    
    "मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है.. अंकल" उसने तुरंत आंखों में आंखें डाल कर कहा
    
    "जरूरी बात” वह थोड़े हैरान हुए "लेकिन क्या??"
    
    "कुछ है जो मुझे आपको बताना है" निधि ने अपना मोबाइल निकाल कर उसके सामने रख दिया। मोबाइल में आड़ी टेढ़ी लकीरों की तस्वीरें थी "इस तस्वीर का रहस्य क्या है...??"
    
    वकार अहमद उन तस्वीर को देखा "अरे बेटा, तुम्हें यह लकीरें कहां से..... किसी और को तो नहीं पता..... किसी को बताया तो नहीं"
    
    "अभी तक तो नहीं...!!"
    
    "बहुत अच्छे!!" उसने फोन उठाकर अपने पास रख लिया।
    
    "लेकिन यह है क्या..??"निधि ने पूछा
    
    "यह बहुत ही बेशकीमती चीज है" वकार अहमद ने बताया "एक नहीं बल्कि कई देश इसके पीछे पड़े हैं।"
    
    "कई देश!!"
    
    "हां!!"
    
    "पर यह है क्या??"
    
    वकार अहमद खड़ा हुआ और दरवाजा बंद करके उसके पास आया "इन आड़ी टेढ़ी लकीरों को थंडर लाइन्स कहा जाता है। जैसा कि तुम जानती हो एक देश दूसरे देश पर हमेशा हमला करता रहता है। सीरिया और इराक के मामले में यह सब पिछले कई सालों से हो रहा है। एक सेना दूसरे देश की सेना पर हमला तो करती है लेकिन कभी कामयाब नहीं हो पाती, इसका मुख्य कारण है दोनों देश की सेनाओं का आमने सामने आना। पड़ोसी देश भी इस जंग में शामिल है। जिस वजह से कई देश एक साथ इस जंग में अपनी भूमिका निभा रहे थे। अगर किसी एक देश को दूसरे देश पर जीत हासिल करनी हैं तो उन्हें तीन चीजों की आवश्यकता है.... पहले, उनकी खुद की सेना.... दूसरी, खुफिया रास्ते... और तीसरी सामने वाली सेना का सामने ना मिलना। अगर एक बार सेना राजधानी पहुंचकर वहां के प्रधानमंत्री को घेर ले तो उस देश को घुटने टेकने पड़ते हैं। यह थंडर लाइन्स देशों के वही खुफिया रास्ते हैं जिससे वह एक बड़ी सेना को एक देश से दूसरे देश आराम से ले जा सकते हैं।  इनकी कीमत सिर्फ वही समझ सकता है जिसके पास यह रास्ते हो....अगर किसी भी देश में से एक के पास भी यह रास्ते चले जाते हैं तो वह अपने देश के अंदर आने वाले खुफिया रास्तों को बंद कर दूसरे देश में अपनी सेना सुरक्षित भेज सकता है। मतलब.... कामयाबी उसके हाथों में होगी... और उसे कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता "
    
    थंडर लाइन्स!! यह तो एक नया ही कॉन्सेप्ट था। दूसरे देश में घुसने के नए रास्ते जो पूरी तरह से खुफिया थे। निधि ने इनके बारे में पहले कभी नहीं सुना था, जो भी था वह आज ही सुन रही थी। "अब बात कुछ कुछ समझ में आ रही हैं। सीरिया के लोगों को इन लाइन्स की जरूरत थी, जो कि हमारे एजेंट के पास थी। उन्हें इस बात की जानकारी मिली और उन्होंने हमारे एजेंट को खत्म कर दिया। लेकिन यह तो बात सीरिया की थी..... यहाँ के एजेंट को किसने मारा" निधि कहते हुए खड़ी हुई और बिल्कुल बेकार अहमद के सामने आ गई।
    
    "मैं इसका पता लगा लूंगा बेटी... जरूर सीरिया का कोई एजेंट यहां होगा" उसने अपनी आंखें निधि से छुपाते हुए नीचे देख कर कहा।
    
    "हां, मुझे भी यही लगता है" निधि अपनी आंखें वकार अहमद से मिला रही थी। "चलिए, रात बहुत हो गई है अब सो जाना चाहिए!! सुबह इस पर बात करते हैं"
    
    निधि ने लंबी सांस लेकर कहा और फिर अपने कमरे में चली गई।
    
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    THE TRUBLE OF NIDHI BEGAN FROM HERE
    
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    रात को तकरीबन 2:00 बजे निधि अपने कमरे में आराम से सो रही थी। इसी वक्त बाहर की गली में कुछ हलचल हो रही थी, चार से पांच अनजान आदमी किसी तरह के ज्वलनशील पदार्थ की गैलन लेकर वकार अहमद के घर में आ रहे थे। वह सब वहां वकार अहमद के सामने आकर खड़े हुए और आंखों ही आंखों से आगे क्या करना है इस बात का इशारा करने लगे। वकार अहमद ने आंखों से इशारा कर सबसे पहले दरवाजा बंद करने को कहा, एक आदमी ने आगे निकलकर दरवाजा बंद किया। इसके बाद वकार अहमद ने आंखों से इशारा कर उनके हाथ में जो ज्वलनशील पदार्थ की गैलन थी उसे निधि के कमरे में डालने को कहा।
    
    कमरे का दरवाजा बंद था। अंदर से भी और बाहर से भी। अंदर निधि को इस बात का बिल्कुल नहीं पता था कि वह एक नए खतरे में फंसने वाली है। नींद को प्यार करने वाली निधि जल्दी उठने के लिए बिल्कुल नहीं जानी जाती। कमरे में पंखे की आवाज सन्नाटे को दूर कर रही थी। चारों और सिर्फ और सिर्फ दीवारें थी, किसी तरह की खिड़की नहीं। लकड़ी का सामान भी काफी सारा भरा हुआ था, अगर एक चिंगारी भी इन्हें छूती है तो पूरा कमरा आग से भड़क उठेगा।
    
    बाहर के आदमी ज्वलनशील पदार्थ को दरवाजे के नीचे से अंदर डालने लगे। धीरे धीरे ज्वलनशील पदार्थ लिक्विड की फॉर्म में दरवाजे के नीचे से निकलकर निधि के कमरे में फैलने लगा। यह पेट्रोल नहीं था, ना ही डीजल, बल्कि एक ऐसा ज्वलनशील पदार्थ था जो इराक में तेल के कुओं के अंदर पाया जाता है, इसे लिक्विड एलपीजी कहा जा सकता है जिसमें कोई गंध नहीं होती। अक्सर घरों में जो एलपीजी से गंध आती है वह उसके अंदर मिलाई गई दूसरी गैस की वजह से होती है न कि उस गैस की वजह से जो हम जलाने में काम लेते हैं।
    
    निधि ने इधर बेड पर करवट बदली और उधर पूरा लिक्विड कमरे में फैल गया। बेड से लेकर कमरे की सभी लकड़ी की चीजों को वह लिक्विड भिगो चुका था।
    
    बाहर खड़े दो अनजान व्यक्तियों ने माचिस की तीली जलाई और उसे लिक्विड पर फेंक दिया। माचिस की तीली के लिक्विड पर गिरते ही आग बाहर से अंदर की ओर जाने लगी।
    
    आग सबसे पहले दरवाजे तक पहुंची, उसके बाद दरवाजे के नीचे से होते हुए अंदर, और फिर अंदर जाकर लकड़ी के सामान तक, ओर उसे जलाने लगी।
    
    निधि अभी भी सोई हुई थी। लकड़ी का सामान धीरे-धीरे आग पकड़ने लगा और कमरे में गर्मी बढ़ने लगी।
    
    निधि ने नींद में ही चद्दर को दूसरी तरफ कर दिया क्योंकि उसे गर्मी लग रही थी, लेकिन एक पल भी यह नहीं सोचा कि वह खतरे में है।
    
    आग थोड़ी बढ़ी और बेड तक जा पहुंची। इस बार निधि को कुछ महसूस हुआ, एक गर्मी जो उसके शरीर को जला रही थी।
    
    वह पलक झपकते ही उठी और सामने का खतरनाक नजारा देखा। उसका कमरा जल रहा था...
    
    "ओह नो... यह क्या!! " वह तुरंत तेजी से बेड पर ही खड़ी हो गई।
    
    पूरे कमरे में आग लग रही थी, कमरा में खिड़की नहीं थी ऐसे में निधि बचकर कहीं नहीं जा सकती थी।
    
    बाहर के अनजान आदमियों ने एक भारी-भरकम अलमारी सरकाई और उसे दरवाजे के आगे लगा दिया, ताकी अंदर से निधि दरवाजा तोड़कर बाहर ना आ सके।
    
    निधि को भी महसूस हो गया कि बाहर का दरवाजा बंद हो चुका है और वह किसी बड़े चक्रव्यूह में फंस चुकी है। पर अब बहुत देर हो चुकी थी.... उसके बचने का कोई रास्ता नहीं था।
    
    उसने खुद का होश संभाला  और तुरंत मुश्किल हालातों में  बचने का रास्ता ढूंढने लगी...सबसे पहले बेड के भारी-भरकम गद्दों को समेटकर साइड में किया ताकि आग उसे ना लगे... अगर एक बार आग बेड के गद्दे को लग गई तो वह तेजी से कमरे में गर्मी बढ़ाएगी।
    
    बाद में निधि बेड से उतरते हुए आसपास की लकड़ी के सामान को अलग करने लगी.... सिर्फ इस उद्देश्य से कि जितना हो सके उतना आग को फैलने से रोका जा सके।लेकिन इस तरह वह ज्यादा देर तक नहीं बच सकती थी... धीरे धीरे कमरे में लकड़ियों के जलने के कारण धुआँ बढ़ने लगा।
    
    "मुझे जैसे तैसे कर यहां से बाहर निकलना होगा... वरना मेरी कब्र आज यही खुद जाएगी" उसने खुद से कहा और कमरे की चीजों को देखने लगी।
    
    वह कुछ लोहे का सामान पड़ा था...." खुद जाएगी.... कब्र खुद जाएगी" पता नहीं उसके दिमाग में क्या आया वह खुद से यही बोली और फिर तेजी से कूदकर लोहे के सामान में से एक नुकीली पाइप उठा ली। पाइप मजबूत थी।
    
    उसने पाइप उठाई और फर्श पर वार करने लगी। वह फर्श तोड़ने की कोशिश कर रही थी।
    
    जैसा कि मैंने आपको पहले बताया था यहां की दीवारें और फर्श बहुत कमजोर है और उन्हें काफी समय से मरम्मत की आवश्यकता थी। इस वक्त निधि के मन में जो विचार आ रहा था वह इस फर्श को तोड़ने का था ताकि वह इस कमरे से बाहर निकल सके।
    
    बाहर के अनजान लोग अब तक कमरे को छोड़ कर जा चुके थे.... वह पूरी तरह से आश्वस्त थे कि निधि अब नहीं बचेगी लेकिन निधि हिम्मत हारने वाली नहीं थी....
    
    जल्द ही उसकी कोशिश रंग लाई और एक हल्के से झटके के साथ पूरा का पूरा फर्श नीचे गिर गया। फर्श नहीं बल्कि वहां का सामान भी, बचने के चक्कर में उसने एक और नई आफत मोल ले ली...नीचे वाली मंजिल में गिरते ही कई सारी ईंट और गर्म गर्म कोयले उसके ऊपर आ गिरे।
    
    ***
    
    कुछ समय बीत जाने के बाद उस जगह पर कुछ ईंटें ऊपर उठती हुई दिखाई दी, निधि उन ईंटों को अपने ऊपर से हटा रही थी। पता नहीं आज सुबह उसने किस की शक्ल देखी थी जो उसे इन मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ रहा है। उसने अपने जख्मी हाथ से बाकी की ईंटों को साइड में किया और खुद बाहर सुरक्षित निकली। उसके कपड़े कई जगहों से फट चुके थे... शरीर के कई हिस्सों से खून निकल रहा था.. मुंह पर खरोंच और दाग के निशान थे। शरीर की त्वचा हल्की सांवली पड़ चुकी थी।
    
    जैसे ही वह निकल कर बाहर आई, उसने चलने की कोशिश की, सामने दूसरा कमरा था जहां से सीढियां निकलकर वापस ऊपर जा रही थी। निधि उन सीढ़ियों पर चढ़कर ऊपर जाने लगी... वहां पहुंचकर उसने कुछ कपड़े के टुकड़े उठाए और उसे अपने घावों पर बांधा..... सुबह के तकरीबन 3:00 बज रहे होंगे और बाहर काफी ज्यादा अंधेरा था।
    
    घर खाली था... ना वहां वकार अहमद था ना ही उसकी पत्नी। जख्मों की मरहम पट्टी करने के बाद निधि ने फ्रिज खोली और वहां से वाईन की एक बोतल निकाल ली।  फिर बोतल को टेबल पर रखा है और एक के बाद एक आधी बोतल पी गई। इससे वह दर्द को कम महसूस करेगी।
    
    "वकार अहमद धोखा देगा.... यह नहीं सोचा था" उसने तुरंत अपनी पॉकेट में हाथ डाला और दूसरा फोन निकाला। जल्दी उस पर वकार अहमद की लोकेशन ट्रैक की। वकार के पास निधि का फोन था ऐसे में लोकेशन ट्रैक करना ज्यादा मुश्किल नहीं। निधि के पास दो फोन थे। एक फोन उसने वकार अहमद को दे दिया था और एक उसके खुद के पास था।
    
    "सुबह होने से पहले मुझे वकार अहमद को ढूंढना होगा......क्योंकि यह तो सिर्फ पहला खतरा था.... अगर वकार अहमद मुझे ना मिला....तो पता नहीं आगे और कौन-कौन से खतरे आएंगे। थंडर लाइनस बहुत बेशकिम्मती
    
    है"
    
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13


    
    निधि का वकार अहमद को पकड़ना
    
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    आगे क्या होगा, बिना इस बात की फिक्र किए निधि वकार अहमद की खोज पर निकल चुकी थी। रात के तकरीबन 5:30 वह घर के पीछे बनी गली में थी। उससे चला नहीं जा रहा था लेकिन इसके बावजूद उसे वकार अहमद को ढूंढना था। गली में उसने एक बाइक की तारों से छेड़खानी की और उसे स्टार्ट कर सड़क पर निकल गई। वकार अहमद की लोकेशन उसके फोन पर शो हो रही थी जो यहां से तकरीबन 11 किलोमीटर की दूरी पर थी।
    
    निधि ने मोटरसाइकिल उस लोकेशन की तरफ कर लिया जो उसे उसका मोबाइल दिखा रहा था। ठीक 7 से 8 मिनट बाद वह सीमावर्ती क्षेत्र में एक सैनिक कैंप के पास थी। लोकेशन उसे उसी जगह के बारे में दिखा रहा था। निधि ने बाइक की लाइट बंद की और बाइक को दूर ही रोक दिया। अक्सर एजेंसी के जासूसों को इस बात की ट्रेनिंग दी जाती थी कि कौनसे हालातों में कैसे कदम उठाने हैं। फिर वह पैदल ही झुकते हुए क्षेत्र की तरफ जाने लगी। रास्ते में कुछ कटीली तारे आई जहां आकर वह रुक गई। फिर उसने अंदर झांक कर देखा।
    
    सामने तीन से चार तंबू थे, जिन के बीचों बीच रखी एक मेज कुर्सी पर वकार अहमद किसी से बात कर रहा था।
    
    "देखो, मैं तुम्हें पूरे तीस लाख दूंगा.... तुम्हें मेरे समेत पांच और लोगों को बॉर्डर क्रास करवाना होगा" वकार अहमद बोला
    
    "नहीं नहीं, इतने में सिर्फ तीन लोगों को बॉर्डर कोर्स करवाया जा सकता है" उस आदमी ने वकार अहमद से कहा जिसे वह बात कर रहा था।
    
    यह सुनकर वकार अहमद ने पीछे की तरफ देखा जहां पांच आदमी, और उसकी पत्नी खड़ी थी। फिर अपना रिवाल्वर निकाला और उनमें से तीन आदमियों को मार दिया। अब सिर्फ एक आदमी, और उसकी पत्नी बची थी। "ठीक है, जैसा तुम्हें सही लगे"
    
    बातें सुन रही निधि ने नजर घुमाकर आसपास देखना शुरू किया। वहां गिनती के चार पांच सैनिक ही दिखाई दे रहे थे। जैसा कि वकार अहमद ने बताया था कि उसकी मिलिट्री से अच्छी जान पहचान है, ऐसे में हो ना हो यह बंदा उसके काम आने वाला शख्स था।
    
    निधि कदमों के बल तार के नीचे से निकली और तंबू के पीछे जाकर छिप गई। वहां से वकार अहमद सिर्फ 2 मीटर की दूरी पर था।
    
    फिर निधि ने वापिस झुक कर अपने बगल वाले तंबू का रुख किया, तंबू के दरवाजे के सामने एक सैनिक खड़ा था जो सामने की ओर देख रहा था। यह सैनिक इस तरह खड़ा था कि वकार अहमद का ध्यान उन पर नहीं था।
    
    निधि चुपके से उसके पीछे गई और उसके मुंह को दबाकर अंधेरे की ओर ले आई। सैनिक ने अपना मुंह निधि से छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन निधि ने इतनी जोर से पकड़ रखा था कि वह अपनी कोशिश में कामयाब नहीं हो सका। 3 से 4 मिनट की देरी के बाद सैनिक तमाम कोशिशों के बाद दम तोड़ गया। सेनिक को खत्म करने के बाद निधि ने उसके हथियार उठाए और अपने पास रख लिए।
    
    फिर वह वहां से दूसरे तंबू की ओर चली गई हो। इस तंबू के अंदर 2 सैनिक थे जो सोए हुए थे। निधि चुपके से उस में घुसी और चाकू की धार उनके गलों पर फेर दी।
    
    3 सैनिकों को खत्म करने के बाद 2 सैनिक और बचे थे जो इस क्षेत्र का पहरा दे रहे थे।
    
    यह 2 सैनिक अलग अलग खड़े थे। एक तंबू के आगे और एक तंबू के पीछे। निधि चुपके से सबसे पहले तंबू के पीछे वाले सैनिक के पास गई और पीछे से झपटते हुए उसका मुंह दबाकर चाकू उसकी पीठ में घोप दिया।
    
    इसके बाद तंबू के अंदर से होते हुए उसके सामने खड़े बंदे को तंबू के अंदर पटक लिया और उसका भी काम तमाम कर दिया।
    
    सभी सैनिकों को मारने के बाद अब कुल 4 और लोग थे जिनसे उसे लडना था। वकार अहमद, उसकी पत्नी, उसके साथ वाला आदमी.... और वह आदमी जिसे वकार अहमद बात कर रहा था।
    
    इन लोगों से लड़ने के लिए निधि बेफिक्र थी, उसने सैनिक से चुराई हुई बंदूक साइड में रखी और दो पिस्तौल अपने हाथ में पकड़ लिए। फिर गोलियां चलाते हुए सीधे तंबू से बाहर निकली।
    
    बाहर खड़े उन आदमियों का अफरा-तफरी मच गई, कुछ को बचने का समय मिला और कुछ को नहीं।
    
    वकार अहमद बचकर टेबल के नीचे झुक गया, जबकि बाकी के लोग निधि द्वारा चलाई जा रही गोलियों की चपेट में आ गए।
    
    एकदम से किए गए इस हमले के कारण निधि को ज्यादा लड़ाई करने की आवश्यकता नहीं पड़ी, वकार अहमद को छोड़कर बाकी सब मर चुके थे।
    
    निधि ने पिस्तौल सीधे वकार अहमद के सर पर रखा और पूछा "बताओ, क्यों किया तुमने यह सब??"
    
    वकार अहमद बुरी तरह से डर गया। " त त त त तुम बच कैसे गई"
    
    "जो पूछा है वह बताओ... वरना यह गोली सीधे सर में ठोक दूंगी" निधि ने धमकाने वाले अंदाज में कहा।
    
    "बताता हूं बताता हूं, दरअसल, में सीरिया का एक खुफिया एजेंट हूं"
    
    "लेकिन तुम तो एकेडमी के लिए काम करते हो...."
    
    "अभी भी करता हूं, लेकिन....."
    
    "लेकिन क्या" निधि ने पिस्तौल का जोर उसके सर पर देते हुए कहा
    
    "इसमें मेरा कोई कसूर नहीं। यह तुम्हारी एकेडमी के ही कारण हुआ है। वह लोग बहुत सुस्त हैं" वकार अहमद बिना जान की फिक्र किए सीधे निधि के सामने खड़ा हो गया। "वह लोग एजेंट को दूसरे देशों में छोड़ तो देते हैं लेकिन इसके बाद उनका अता-पता ही नहीं पूछते। पैसों के भी किल्लत आए दिन बनी रहती है.... इन सबके चलते हमें दूसरे देशों का साथ देना पड़ता है।"
    
    "तुम सीरिया का साथ क्यों दे रहे मुझे बस वो बताओ"
    
    "दरअसल कुछ साल पहले की बात है... मैं किसी मिशन पर सीरिया गया था..... और उस मिशन में पकड़ा गया। सीरिया के प्रधानमंत्री ने मेरे सामने दो रास्ते रखें..... पहला रास्ता.... उनका साथ दुं और खूब सारा पैसा खाऊं... और दूसरा रास्ता.... मर जाऊं। मेरे पकड़े जाने के तुरंत बाद एकेडमी ने अपने हाथ पीछे खींच लिए, बचने की कोई उम्मीद नहीं थी..... इसलिए वहां मैंने पहले वाला रास्ता चुना। किसी को शक ना हो इसलिए एकेडमी के लिए भी काम करता रहा........ सीरिया के प्रधानमंत्री ने मुझे मिशन दिया कि मैं उनके लिए थंडर लाइनस ढूंढु..... यह उनके लिए सबसे ज्यादा कीमती थी.... जिस कारण और भी एजेंट उन्हें ढूंढने में लगे हुए थे..... थंडर लाइन के बदले उसे ढूंढने वाले इंसान को सीरिया के जनरल की गद्दी मिलेगी..... जो सच में बहुत बड़ा इनाम था। फिर मुझे पता चला कि एकेडमी प्रधानमंत्री को मारने के लिए कुछ एजेंट भेज रही है...... लेकिन मैंने यह जानकारी अपने तक सीमित रखी। वह एजेंट यहां आए तो प्रधानमंत्री को मारने थे..... लेकिन उनके हाथ थंडर लाइन लग गई...... सीरिया में विनम्र उनके पीछे था.... और यहां मैं...... इस वजह से कोई भी नहीं बचा। सीरिया में विनम्र ने उन्हें मार डाला.... और यहां मैंने। हम दोनों के मन में लालच था.... और यही वजह है कि हम अपने देश से गद्दारी कर रहे हैं"
    
    निधि उसकी बात सुनकर किसी भी तरह से हैरान नहीं हुई। एजेंसी में गद्दारी का सिलसिला बहुत पुराना है, और खुद उसके सीओ कैप्टन रोड भी इस बात से परेशान है।
    
    "लेकिन तुम्हें पता है देश से गद्दारी करने की सजा क्या होती है....??" निधि ने पिस्तौल का ट्रिगर दबाते हुए कहा।
    
    "अपने देश में हो तब तो इसकी सजा मौत होती है, लेकिन जब देश ही दूसरा हो तो उसकी कोई सजा नहीं ...." अचानक वकार अहमद ने अपने एक हाथ से निधि के पिस्तौल को साइड में किया और दूसरे हाथ से खंजर निकालकर उसे निधि के पेट में घोंप दिया।
    
    लेकिन इस से पहले खंजर पूरा पेट के अंदर जाता निधि ने उसे बीच में ही पकड़ लिया। फिर वकार अहमद को धक्का मारते हुए पीछे किया।
    
    जल्द ही वहां सेना के सात से आठ सैनिक और आ गए.....उन्होंने पूरे क्षेत्र पर गोलाबारी शुरू कर दी। निधि घायल थी इस वजह से वह वही तब्बू के पीछे छुप गई.... जबकि वकार अहमद बॉर्डर की तरफ भागने गया।
    
    निधि ने मुड़कर वकार अहमद की तरफ देखा वह बॉर्डर पार कर रहा था। वहां के सैनिकों की नजर भी उस पर पड़ गई.... और सभी सात से आठ सैनिक उसका पीछा करने लगे।
    
    मौके का फायदा उठाकर निधि दूर खड़ी अपनी बाइक की तरफ भागी और वहां से निकल गई।
    
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    सुबह होते ही निधि एक अस्पताल में अपने जख्म पर मरहम पट्टी करवा रही थी। डॉक्टर ने उसकी पट्टी करने के बाद कहा "आर यू वेल नो"
    
    "हां" निधि ने जवाब दिया जिसके बाद डॉक्टर वहां से चला गया।
    
    "वकार अहमद बॉर्डर क्रॉस कर चुका होगा, और वहां उसका मकसद प्रधानमंत्री से मिलना है....अगर एक बार वह प्रधानमंत्री से मिला तो उन्हें थंडर लाइन दे देगा" निधि खुद से ही बोली "कैसे ना कैसे कर...मुझे वकार अहमद को प्रधानमंत्री से मिलने से रोकना होगा"
    
    निधि ने कहा और खड़ी होकर अस्पताल से बाहर जाने लगी। पीछे से उसे डॉक्टर कहते रहे...."मैम, यू आर नॉट फाइन..... स्टे हेयर" पर निधि ने उनकी एक बात नहीं सुनी।
    
    ****
    
    ठीक 1 घंटे बाद निधि चरवाहों से बात कर रही थी। उसने चरवाहों को कुछ पैसे दिए और बॉर्डर क्रॉस करवाने का सौदा किया।
    
    चरवाहे सोदें के लिए मान गए और तकरीबन 7:30 बजे तक चरवाहों ने निधि के साथ बॉर्डर क्रॉस किया और निधि को सीरिया पहुंचा दिया।
    
    सीरिया पहुंचते ही निधि ने सबसे पहले वहां के मिलिट्री कैंप से कांटेक्ट किया। उसे कमांडर विनम्र की तलाश थी। उन्होंने निधि को उस बेंच का रास्ता बताया जहां कमांडर विनम्र काम करता था। 
    
    निधि वहां पहुंची और एक ऑफिसर से पूछा "क्या मैं.... विनम्र से मिलसकती हूं"
    
    "कमांडर विनम्र" सामने के आदमी ने कहा जिससे निधि ने पूछा था।
    
    "हां वही" निधि तेजी से बोली।
    
    "सुबह-सुबह वह जिम में होता है...." आदमी ने कहा और उसे बाहर निकलकर जिम का रास्ता दिखाया।
    
    जिम के बाहर बड़े-बड़े बोर्ड लगे हुए थे, कई तरह के अलग अलग पोस्टर थे। सभी पोस्टर में सोल्जर दिखाई दे रहे थे। यह सैनिकों के लिए बनाया गया खास तरह का जिम था, जहां अलग-अलग टुकड़ियों के कमांडर और खास लोग आकर एक्सरसाइज किया करते थे। निधि के अंदर जाने से पहले ही वहां बाहर खड़े लोग उसे अजीब नजरों से देख रहे थे। लेकिन इस वक्त निधि के लिए सबसे जरूरी विनम्र से मिलना था। उससे मिलकर अगर एक बार पूरी बात क्लियर हो जाती है तो हो सकता है  उसको कुछ मदद मिल जाए। निधि ने दरवाजा खोला और खोलकर जिम के अंदर दाखिला लिया लेकिन वह अंदर जाते ही समझ गई कि वह गलत जगह आई है।
    
    वहां तकरीबन छह से सात हटे कट्टे आदमी थे। सबकी नजरें स्लो मोशन से एक वहिशे दरिंदे की तरह निधि को निहार रही थी। निधि ने इधर-उधर घूम कर विनम्र को ढूंढने की कोशिश की लेकिन वह वहां दिखाई नहीं दिया। उसने मुड़कर वापिस जाने का सोचा..... लेकिन एक आदमी उसके सामने आ खड़ा हुआ।
    
    "बरसों से सुखी बंजर जमीन पर.... आज एक कली ने दस्तक दी है...... बरखुरद्दार यहां सिर्फ आने का रास्ता है.... जाने का नहीं, तुम सीरिया की नहीं लगती" उस आदमी ने कहा।
    
    निधि कुछ नहीं बोली। वह साइड से हटकर बाहर जाने लगी लेकिन उस आदमी ने अपना हाथ उसके आगे कर वह रास्ता भी रोक लिया।
    
    "मैंने बोला ना.... यहां सिर्फ आने का रास्ता, बाहर जाने का नहीं, बताओ तुम कौन हो??" उस आदमी ने दोबारा कहा।
    
    "देखो!! मैं लड़ाई नहीं चाहती" निधी बोली
    
    "अच्छा जी!! फिर जो चाहती है वह ले ले, लेकिन बताना तो तुम्हें पड़ेगा ही"
    
    " काश मैं बताती " निधि ने कहा और उसका हाथ पकड़ जोर से घुमा दिया... इतनी जोर से की उस आदमी के अंदर की हड्डी तक टूट गई। वह जोर से चिल्लाया।
    
    उसके चिल्लाने के कारण जिम के बाकी लोग भी इकट्ठा हो गए और एक-एक कर निधि पर टूट पड़े।
    
    एक आदमी ने आगे बढ़कर हमले के लिए अपना हाथ उठाया लेकिन निधि ने उससे बचते हुए पास पड़ा डबल के पास चली गई। उसने वहां से एक डबल उठाया और उसके गर्दन पर दे मारा।  वह आदमी एक निर्जीव इंसान की तरह सीधे नीचे गिर पड़ा।
    
    यह देखकर सब चौंकाने हो गए। दो आदमी एक साथ निधी की तरफ बढ़े। निधि ने कुछ कदम पीछे हटते सबसे पहले कुछ डंबल हवा में उछालते हुए दोनों में से एक आदमी के ऊपर गिराया और फिर वहां पड़ी रोड उठा ली। रोड उठाते ही उसने आगे आ रहे आदमी के जांघ पर वार किया जिससे वह नीचे गिर गया।
    
    बाकी के आदमी भी उस पर हमला करने के लिए लपके लेकिन निधि के पास रोड़ थी, उसने एक-एक कर सभी आदमियों का सामना किया। एक आदमी के सर पर रोड मारी, एक आदमी के कंधे पर...
    
    वह आदमी जो सबसे पहले निधि को मिला था वह जमीन पर पड़ा था। निधि उसके पास गई और रोड उसके गर्दन पर रखते हुए बोली "जो लोग रास्ता रोकते हैं मैं रास्ते के साथ-साथ उन्हें भी तोड़ देती हूं......" और रोड वही गिरा कर बाहर की तरफ जाने लगी।
    
    निधि को लगा कि वह आदमी अब कुछ नहीं करेगा, लेकिन वह होशियार था। पीछे से उसने एक पतली रस्सी उठाई और निधि के गले में डालते हुए उसे नीचे गिरा लिया। निधि ने पास पड़ी रोड उठाने की कोशिश की लेकिन वह उसकी पहुंच से दूर थी।
    
    गला दबाने के कारण धीरे-धीरे उसकी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा, उसके बचने की उम्मीद शुन्य थी.... लेकिन तभी विनम्र वहां आ गया।
    
    आते ही उसने अपना रिवाल्वर निकाला उस आदमी के सर के बीचो-बीच रखते हुए उसे निधि को छोड़ने को कहा" छोड़ो इसे"
    
    आदमी ने गुस्सा दिखाते हुए निधि को छोड़ दिया। निधि बहोश हो चुकी थी। विनम्र ने निधि को उठाया और उसे वहां बेंच पर लिटा दिया। "तुम ठीक तो हो ना" वहां लिटाते ही उसने पूछा
    
    लेकिन निधि ने कोई जवाब नहीं दिया। विनम्र ने तुरंत उसकी नब्ज चेक की। उसकी सांसे बंद हो रही थी।"शीट!! यह मर रही है" इन हालातों में किसी को बचाने के दो ही तरीके होता है,  करंट देना या फिर सांस देना। विनम्र ने अपने आसपास देखा। उसे कोई भी ऐसी चीज नहीं दिखी जिससे वह उसे शोक दे सके। बिगड़ते हालात देखकर विनम्र ने तुरंत एक लंबी सांस ली और सांस लेकर उसके होठों को चूम लिया। इसके अलावा उसके पास निधि को बचाने का और कोई रास्ता नहीं था।
    
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14


    
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    विनम्र निधि को किस कर रहा था, लेकिन किसी गलत इरादे से नहीं बल्कि उसकी जान बचाने के लिए।
    
    अचानक निधि की सांस में सांस आई, उठते ही उसने खुद को संभाला और विनम्र को धक्का मारते हुए साइड में किया। "यह तुम क्या कर रहे हो ??"
    
    "पागल!!" विनम्र सामने से एक अलग ही अंदाज में कहा। इससे पहले जहां उसका चेहरा एटीट्यूड से भरा लगता था वहीं अब उसके चेहरे पर चिर परिचित होने की छवि झलक रही थी " तुम मर रही थी....... बचा रहा हूं "
    
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    15 मिनट बाद वह दोनों सीरिया के मिलिट्री बेस कैंप में एक तंबू के सामने बैठे थे। निधि की हाथ में चाय थी जबकि विनम्र खाली हाथ बेठा था। वह निधि को कुछ बता रहा था।
    
    "तुम्हारे मॉम-डेड की डेथ के बाद सब कुछ बदल गया था। भले ही मेरे पापा तुम्हारे पापा को बचपन से जानते थे लेकिन उनकी मौत के बाद उन्हें भी एक धक्का सा लगा। उन्हें खुद की और मेरी फिक्र होने लगी। एजेंसी अपने बहुत नाजुक मोड़ पर थी, तुम्हारे पापा के कत्ल के बाद और भी कई सारे कत्ल हुए। एजेंसी के पुराने एजेंट एक-एक कर मरने लगे, इन हालातों में मेरे पापा ने इस देश को छोड़ना बेहतर समझा। उन्होंने मेरा नाम एडवांस ट्रेनिंग में जोड़ा और मुझे लेकर सीरिया आ गए। यहां उनकी काफी अच्छी जान पहचान थी, इस वजह से कुछ दिनों में हमें सीरिया की नागरिकता मिल गई। एडवांस ट्रेनिंग में होने की वजह से एजेंसी को लगा कि मैं उनके लिए काम कर रहा हूं लेकिन ऐसा नहीं था। मुझे पापा पहले ही बोल चुके थे कि अब वह लोग एजेंसी के लिए काम नहीं करेंगे, ऐजसीं बंद होने की कगार पर खड़ी थी, और खुदा ना खासता एजेंसी बंद हो जाती है तो हम लोगों के जिने की संभावनाएं खत्म हो जाएगी। जान पहचान के चलते उन्होंने मुझे सीरिया की सेना में ट्रेनिंग के लिए भेज दिया, मैंने वहां ट्रेनिंग ली और धीरे-धीरे उनका कमांडर बन गया। ऐजंसी ने भी दोबारा कांटेक्ट नहीं किया इसलिए कभी वापस जाने का मूड ही नहीं बना।"
    
    निधि ने चाय का एक सीप पिया "तुम्हारे पापा सिर्फ हमारे पड़ोसी नहीं थे, बल्कि वह पड़ोसी से भी बढ़कर थे। लेकिन मैं नहीं जानती थी परिस्थितियां कुछ इस तरह बदलेगी। मॉम डैड की डेथ के बाद मुझे अंकल रोड अपने साथ ले गए, उस वक्त मेरे मन में तुम्हारा ख्याल नहीं आया था। वहां उन्होंने मेरी ट्रेनिंग शुरू कर दी, तब मेरी उम्र साढे दस साल होगी जब मैंने ट्रेनिंग लेना शुरू किया था। ढाई साल की ट्रेनिंग के बाद मुझे तुम्हारा ख्याल आया, लेकिन तुम फाइलों से गायब थे। तुम्हारे पापा का भी कोई अता-पता नहीं था। अंकल से पूछा तो उन्होंने बताया कि एडवांस ट्रेनिंग के चलते तुम लोगों को फाइलों से हटा दिया गया, लेकिन उन्हें यह नहीं बताया था कि तुम सीरीया आकर रह रहे हो। नियम और कायदे सब पर लागू होते हैं, जब यहां आई तो वकार अहमद ने तुम्हारे बारे में बताया, मैं उसी वक्त समझ गई थी कि यह तुम ही हो।"
    
    "वकार अहमद एक नंबर का कमीना बदां है, ऐजंसी को बर्बाद करने में उसका हाथ है"
    
    "जानती हूं!!" निधि बोली "लेकिन तुम भी यही काम कर रहे हो, ऐजंसी खराब करने का....."
    
    "मैं कुछ नहीं कर सकता, मेरे हाथ पैर बधं चुके हैं, यहां मेरी अच्छी खासी लाइफ है..... मैं अब यहां सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री के लिए काम करता हूं।"
    
    निधि बोली, "पर यह तुम्हारा देश नहीं, यहां तुम जो भी करोगे वह देशद्रोह कहलाएगा।"
    
    "मैं कुछ नहीं कर सकता....." विनम्र खड़ा हुआ और वहां से चला गया। निधि उसे पीछे से जाते हुए देखती रही। आगे जाकर वह रेतीले टिब्बों पर बैठ गया। निधि भी उसके पीछे-पीछे गई और उसके बगल में ही बैठ गई। उसने बड़े ही नाजुक स्वर से कहा "मांनती हुं!! हालात इंसान को झुकने पर मजबूर कर देते हैं, उन्हें ऐसे फैसले लेने पड़ते हैं जो वह कभी नहीं लेना चाहता। तुम्हारे पापा अपनी जगह बिल्कुल सही थे, पर जरा एक नजर सोच कर देखो..... मुश्किल हालात किसके सामने नहीं आते। मैंने भी अपने मॉम डैड को खोया है पर इसके बावजूद एजेंसी के लिए काम कर रही हूं। हां!! इस वक्त एजेंसी बुरी परिस्थितियों से गुजर रही है, पर हालात जल्दी बदल जाएंगे।तुम्हारे पास एक मौका है, तुम यहां बिन मकसद की जिंदगी जी रहे हो, पर वहां तुम्हें जीने का एक मकसद मिलेगा। वहां, जहां तुमने अपना बचपन बिताया, हम एक साथ खेले। आज भी वो जिंदगी तुम्हारा इंतजार कर रही है.... सिर्फ एक कदम, अगर तुम एक कदम उसकी तरफ बढ़ाओगे तो वह जिंदगी तुम्हारी तरफ 10 कदम आगे आएगी। ऐसा मौका कभी नहीं मिलेगा"
    
    "तुम क्या चाहती हो!!" विनम्र बोला "मैं सीरिया से गद्दारी करूं"
    
    "मैं तुम्हें ऐसा करने के लिए नहीं बोल रही। बस जो सही है उसका साथ दो, सीरिया के प्रधानमंत्री के इरादे क्या है यह बात तुम भी अच्छे से जानते हो। वह कहीं ना कहीं इस विश्व को जीतना चाहते हैं, यह किसी भी तरह से एक नेक काम नहीं। अगर वे ऐसा करेंगे तो चारों और शिवाए मौत की और कुछ नहीं मिलेगा"
    
    विनम्र खामोश रहा है। उसने कोई जवाब नहीं दिया। निधि बोलती रही "वकार अहमद के हाथ थंडर लाइन लग चुकी है, वह उन्हें लेकर प्रधानमंत्री के पास जाएगा। इसके बाद उसे प्रधानमंत्री को देगा.... जिसके बाद सिर्फ और सिर्फ तबाही मचेगीं। वह अपने पड़ोसी देशों पर हमला करेंगे, उन्हें जीतेंगे.... और कई निर्दोष लोगों को मारेंगे।"
    
    "मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता!!"
    
    निधि की कोशिश काम नहीं आ रही थी। विनम्र मानने को तैयार नहीं था। "तुम भले ही ना करो, मैं तो करूंगी....मैं उस वकार अहमद को अपने मकसद में कामयाब नहीं होने दूंगी"
    
    "तुम मर जाओगी" विनम्र उसकी तरफ देखते हूए बोला।
    
    "मेरे लिए मायने नहीं रखता, देश के लिए जान गवाना मरना नहीं कहलाता। और मैं तो यहां लाखों करोड़ों लोगों की जिंदगी बचाने वाली हुं"
    
    निधि ने कहा और खड़ी होकर वहां से जाने लगी। विनम्र को आगे क्या करना है यह उस पर ही छोड़ दिया। अगर साथ दें तो ठीक है, नहीं दे तो भी ठीक है। उसे तो जो करना है वह करेगी। निधि के कुछ दूर जाने के बाद विनम्र उसके पीछे आया"रुको" उसने पीछे से निधि को रोक लिया। "मैं तुम्हारा साथ नहीं दूंगा, लेकिन तुम्हारी थोड़ी बहुत मदद कर दूंगा.... तुम्हारा मिशन सिर्फ वकार अहमद को रोकना और उन लाइंस को लेना है.... तुम सिर्फ इतना ही करोगी और यहां से चली जाओगी"
    
    "मुझे मंजूर है" निधि मुस्कुराए और खुशी से बोली
    
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    "मेरी योजना ध्यान से सुनो" विनम्र और निधि एक तंबू के अंदर बैठकर आगे क्या करना है, इस चीज की योजना बना रहे थें। "आज प्रधानमंत्री की सालगिरह है, इसलिए वह पूरा दिन बाहर रहेंगे। इन हालातों में वकार अहमद का प्रधानमंत्री से मिलना संभव नहीं। शाम को ठीक 5:00 बजे प्रधानमंत्री अपने ऑफिस में जाएंगे, वही वकार अहमद अहमद उनसे मुलाकात करेगा। यही वह समय होगा जब तुम वकार अहमद को ठीक प्रधानमंत्री से मिलने से पहले पकड़ लोगी। इसके बाद तुम्हें जो करना है तुम करना, 6:00 बजे के बाद में तुम्हे वापिस इराक पहुंचा दूंगा। वहां से तुम फ्लाइट पकड़ना और इंडिया चले जाना।"
    
    "अगर इस योजना में कोई गड़बड़ हुई तो" निधि ने पूछा
    
    "बिल्कुल भी नहीं होगी, अगर बाई चांस गड़बड़ हो भी जाती है तो मैं आज पूरा दिन प्रधानमंत्री के साथ रहूंगा, उनका अंगरक्षक बंन कर। मैं किसी तरह बहाना करके वकार अहमद को फिर से अलग कर दूंगा। लेकिन तुम्हें भी वहां रहना होगा"
    
    "मैं वहां कैसे रहूंगी....."
    
    "कुछ न्यूज़ रिपोर्टर प्रधानमंत्री को कवर करेंगे। मैं नकली डॉक्यूमेंट बनाकर तुम्हें एक न्यूज़ रिपोर्टर बना दूंगा, बस इसके बाद अगले छह-सात घंटे तुम प्रधानमंत्री के आसपास रहोगी, उन्हें कवर करने के बहाने।"
    
    निधि को विनम्र की योजना अच्छी लगी। यह एक सुरक्षित और कामयाब होने वाली योजना थी। लेकिन तब तक जब तक निधि चाहे, वह 6 से 7 घंटे प्रधानमंत्री के आसपास रहेगी, एजेंसी का मीशन है कि प्रधानमंत्री को खत्म करना है, ऐसे में अगर निधि का मन बदल जाता है तो हालात बेकाबू हो सकते हैं।
    
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15


    
    सिरिया के प्रधानमंत्री की सालगिरह,
    
    निधी का उसे हाईजेक करना,
    
    वकार अहमद की मुलाकात, उसका बचकर निकल जाना
    
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    राजधानी।
    
    3 दिन पहले ही राजधानी में मिलिट्री की भारी भरकम टुकड़ियों का आना शुरू हो गया था। चप्पे-चप्पे पर कड़ी सुरक्षा थी। समारोह स्थल के आसपास की बिल्डिंग सैनिकों ने पहले ही अपने कब्जे में ले ली थी। अंदर आने वाले लोगों के दस्तावेज खास तरीके से चेक किए जा रहे थे। आज के समारोह में प्रधानमंत्री अपने सालगिरह को खास बनाना चाहते थे। तानाशाही शासक होने के कारण उनका जनता से जुड़ाव भी आवश्यक था, इसलिए उन्हें इससे अच्छा मौका नहीं मिला। आज सालगिरह के बहाने वह जनता को संबोधित करेंगे, और इस चीज की उम्मीद भी है कि वह इराक से अपने संबंधों को लेकर अपनी बात जनता के सामने रखें। राजनीति में अक्सर नेता के साथ जनता का होना आवश्यक है अन्यथा कभी भी कुछ भी हो सकता है।
    
    सुबह 6:00 बजे से ही लोगों का आना-जाना शुरू हो गया था। 11:00 बजे प्रोग्राम की शुरुआत होनी थी। निधि और विनम्र भी अपनी तैयारिया करने में लगे हुए थे। उन्हें अपनी योजना के अनुसार काम करना था।
    
    तकरीबन 9:30 बजे निधि आईने के सामने अपनी आंख के नीचे बने घाव को देख रही थी। वह अब थोड़ा हल्का हो चुका था।
    
    "क्या हुआ...??" विनम्र ने निधि से पूछा।
    
    "कुछ नहीं... बस घाव के निशान देख रही थी।"
    
    "डोंट वेरी, वक्त हर घाव के निशान को भर देता है..." विनम्रने कहा। निधि उसकी तरफ मुड़ी "कुछ घाव वक्त भी नहीं भर सकता, योजना पर काम कैसा चल रहा है...." निधि ने विनम्र से आगे पूछा
    
    "सब तैयार है, प्रधानमंत्री तक पहुंचने में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं आएगी। इसके बाद आगे का काम तुम्हारा है। सुरक्षा सख्त है.... इसलिए तुम किसी तरह का हत्यार नहीं लेकर जा सकती.... ना ही कोई नुकीली चीज.... तुम्हें उसे दूसरे तरीके से खत्म करना होगा"
    
    "हमममम" निधि ने गहरी सांस ली और जवाब दिया।
    
    "चलो, बाहर जीप तुम्हारा इंतजार कर रही है" विनम्र  कहकर बाहर जीप की तरफ निकल गया।निधि भी आ गई।
    
    ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी, रेगिस्तानी इलाके में सड़क पूरी तरह से साफ थी। ना तो सामने से कोई साधन आ रहा था ना ही पीछे से। निधि ने एक भूरे रंग का बुर्का पहन रखा था जो यहां की पहचान है। विनम्र ने अपनी मिलिट्री वाली ड्रेस पहनी थी। हवा के थपेड़े उन दोनों के चेहरों पर आकर टकरा रहे थे। इन्हीं के साथ निधि अपनी कुछ पुरानी यादों में खोई हुई थी।
    
    विनम्र ने उसका कंधा झकझोरा तो निधि ख्यालों से बाहर आई। "क्या हुआ।।। क्या सोच रही थी"
    
    निधि मुस्कुराई "कुछ नहीं, ऐसे ही कुछ पुरानी यादें"
    
    "इंसान को अक्सर वक्त के हिसाब से खुद को बदलना पड़ता है, वक्त इंसान को हमेशा आगे निकलने के लिए कहता है ऐसे में पुरानी यादों में उलझ कर रहना अच्छी बात नहीं"
    
    निधि ने गर्दन हिलाकर संतुष्टि जताई। दोनों लंबे रेगिस्तानी सफर से निकलकर राजधानी में प्रवेश कर रहे थे। राजधानी की सड़क शुरू होते ही भारी भरकम भीड़ सड़क के दोनों तरफ नजर आ रही। उन्हें रोकने के लिए सैनिक भी खड़े थे।
    
    समारोह स्थल के ठीक आगे जाकर विनम्र ने गाड़ी पार्किंग में पार्क की और निधि के साथ उनके ऑफिस की तरफ निकल गया। रास्ते में आने वाले सैनिकों विनम्र को सलूट कर रहे थे। इन सबके बीच निधि चुपचाप उसके साथ चल रही थी। ऑफिस में जाने के बाद विनम्र ने दरवाजा खोला और निधि को अंदर जाने के लिए कहा। यहां प्रधानमंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस होनी थी, और यहीं रिपोर्टर आगे के प्रोग्राम तक प्रधानमंत्री को कवर करेंगे। निधि ने एक माइक पकड़ा और उन रिपोर्टर के बीच जाकर बैठ गई। विनम्र वही एक सीट के बगल में जाकर खड़ा हो गया, जहां प्रधानमंत्री को आकर बैठना था।
    
    दोनों एक दूसरे को देख रहे थे लेकिन सिर्फ आंखों से। चारों और रिपोर्टरों की तू तू मैं मैं का शोर हो रहा था। जल्द ही सारा शोर प्रधानमंत्री के आने के साथ ही खत्म हो गया। सभी रिपोर्टर खड़े हुए और प्रधानमंत्री का अभिवादन किया। प्रधानमंत्री अपनी कुर्सी पर बैठा और रिपोर्टर को एक-एक कर सवाल पूछने के लिए कहा।
    
    अलग-अलग रिपोर्टरस ने अलग-अलग सवाल पूछे। ज्यादातर सवाल पहले से ही डिसाइड कर लिए गए थे, क्योंकि उनके तानाशाही राज में मीडिया पर पूरा नियंत्रण सिर्फ उन्हीं का था। सवालों में किसी ने पूछा " आप जनता से कितना प्यार करते हैं??" तो किसी ने पूछा "जनता आपको क्यों नकारती है" और कुछ लोग पूछ रहे थे "क्या आप आने वाले समय में इलेक्शन करवाएंगे" इन सबके बीच निधि ने किसी तरह का सवाल नहीं पूछा। वह खामोश थी क्योंकि अगर वह सवाल पूछती तो सबके पैरों तले जमीन खिसक जाती। उसके मन में यही था की "आने वाले समय में उनकी राजनीति को लेकर क्या समझ है?? वह अपना देश पर राज करना चाहते हैं या इस विश्व पर ??" वैसे भी विश्व को जीतने की होड़ दुनियाभर के तमाम नेताओं में मची रहती है, सिकंदर ने भी इसी पीछे अपनी जान गवाई और हिटलर ने भी। लेकिन यह भुख है कि कभी मिटती ही नहीं।
    
    सवाल-जवाब का सिलसिला खत्म हुआ, प्रधानमंत्री खड़े हुए और जनता का अभिवादन करने के लिए मंच की तरफ चले दिए। विनम्र भी उनके पीछे-पीछे मंच की तरफ चला गया। वहां खड़े रिपोर्टरों को मिलिट्री ने कवर किया और एक-एक कर प्रधानमंत्री से कुछ दूर रखी कुर्सियों पर जाकर बिठा दिया। यहां से उन्हें प्रधानमंत्री के अभिवादन को सुनना और रिकॉर्ड करना था। टीवी पर प्रसारण भी यहीं से होगा। निधि के पास मौका तो था कि वह प्रधानमंत्री पर हमला कर उसे खत्म कर दे, लेकिन इन हालातों में ऐसा बेवकूफी से भरा कदम उठाना ठिक नहीं था।
    
    प्रधानमंत्री ने जनता को संबोधित किया।
    
    "मेरे प्यारे देशवासियों, मुझे खुशी है... इस शानदार समारोह पर आप सब यहां एकत्रित हुए। आप लोगों का यह प्यार और देशभक्ति मुझे जीने का सबक देती है। पूर्वोत्तर देशों के हिंसक अत्याचारों के बावजूद हम लोग अपने पैरों पर खड़े हैं। पता नहीं कितने देश आए जिन्होंने अपनी मनमर्जी हम पर चलाई लेकिन हम हरगिज़ नहीं झुके। अपने हक की लड़ाई करना हमारे रगो में हैं, हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया था कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन अपना हक किसी को मत देना। वैसे तो यह मेरी सालगिरह का समारोह, ऐसे में यह बात करना उचित नहीं, लेकिन जिस तरह का माहौल बना हुआ है मुझे यह बात करनी ही पड़ेगी। आज बॉर्डर पर जंग का माहौल है। इराक की सेना मुंह फाड़ हमारे देश की तरफ देख रही हैं। इस बात का भी फैसला करना मुश्किल हो रहा है कि पता नहीं कब वह दिन आएगा जब जंग शुरू हो जाए। एक बार अगर जंग शुरू हो गई तो दूसरे देश भी इस में कूद जाएंगे। हम सब तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रहे हैं, यह तीसरा विश्व युद्ध शक्ति को दिखाने का नहीं बल्कि शक्ति को आजमाने का विश्व युद्ध होगा। सभी देश अपनी अपनी शक्तियां छोटे और कमजोर देशों पर आजमायेंगे। कोई परमाणु बम से हमला करेगा, तो कोई हाइड्रोजन बम से। किसी के पास न्यूक्लियर वेपन होंगे तो किसी के पास न्यूक्लियर टैंक। हम सब एक कभी न खत्म होने वाली जंग की तरफ बढ़ रहे हैं, ऐसे में आप लोग क्या चाहते हैं कि मैं सत्ता से हट जाऊं। बताइए, आप क्या चाहते हैं कि मैं इस देश की भागदौड़ एक ऐसे इंसान के हाथ दे दूं जिसे देश संभालना ही नहीं आता। ( अपने विपक्ष के बारे में बात कर रहे हैं) हमारे दुश्मन हमारे सर पर खड़े हैं और आप लोग चुनावों के बारे में सोच रहे हैं। अगर चुनाव हो जाता है तो दूसरे देश इसका फायदा उठाएंगे, हो सकता है वह हमला भी कर दे। बिना आर्डर के हमारी सेना भी आगे नहीं बढ़ेगी, यह पूरा देश खत्म हो जाएगा। मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूंगा, मैं लुइस इल्लल्लाह जब तक जिंदा हूं तब तक सीरिया की आन और शान बनाए रखूंगा। अल्लाह हू अकबर, अल्लाह हू अकबर"
    
    इसके बाद यह नारे चारों तरफ गूंजने लगे। प्रधानमंत्री ने अपना संबोधन खत्म किया और कई सारे सुरक्षा कर्मचारियों के साथ वहां से निकल गए। निधि और रिपोर्टर भी उनके पीछे-पीछे थे। दूसरे लोगों से नजर बचाकर निधि उन रिपोर्टरों से अलग हुई और एक कोने में जाकर अपना बुर्का उतार दिया। बुर्के के नीचे उसने मिलिट्री वाली वर्दी पहन रखी थी, और यह बात विनम्र को भी नहीं मालूम थी। मिलिट्री की वर्दी में आने के बाद उसने अपने बालों को समेटा और उसे बाधं कर उस पर कैप लगा ली। उसने अपनी वेशभूषा इस तरह कर ली थी कि जैसे वह उन्हीं की मिल्ट्री का हिस्सा है। इस बात से स्पष्ट होता है कि उसके इरादे कुछ और ही है।
    
    अपनी वेशभूषा बदलने के बाद वह फिर से प्रधानमंत्री के काफिले के पीछे हो गई। उसने रिपोर्टरों वाली लाइन छोड़ी और सीधे जाकर प्रधानमंत्री के सुरक्षा कर्मचारियों में शामिल हो गई। वह अब उनके साथ साथ चल रही थी। प्रधानमंत्री के सुरक्षा की जिम्मेदारी विनम्र और युसुफ (उसको ऑर्डर देने वाली इंसानों) के हाथ थी। मतलब अगर कुछ भी ऊपर नीचे होता है तो उन्हीं लोगों को देखना था। विनम्र चारों तरफ नजर रखे हुए था। निधि उससे ठीक 3 सैनिकों की दूरी पर उसके साथ साथ चल रही थी। विनम्र ने निधि कोदेख लिया। वह देखते ही समझ गया निधि क्या करना चाहती हैं, लेकिन वह कुछ कर नहीं सकता था। निधि को रोका तो वह पकड़ी जाएगी, और अगर नहीं रोका तो शायद प्रधानमंत्री की जान पर खतरा आ जाएगा। वह चुपचाप काफिले के साथ साथ चलता रहा, आसपास नजर रखने की बजाय उसने निधि पर निगाहें पेनी कर दी। निधि प्रधानमंत्री के सेफ्टी सिस्टम को हाईजैक कर चुकी थी, वो भी सिर्फ और सिर्फ विनम्र के कारण।
    
    सब आगे चलकर अलग अलग गाड़ियों में बैठने लगे। प्रधानमंत्री के साथ रहने वाले दूसरे ऑफिसर पीछे की गाड़ी में बैठे। निधि, विनम्र और युसुफ तीनों एक साथ प्रधानमंत्री के साथ उनकी गाड़ी में। उनके साथ दो लोग और थे। दूसरे लोगों को लग रहा था कि निधि विनम्र के साथ हैं, और वह उसकी खासम खास है इस वजह से वह साथ में चल रही है, अन्यथा किसी भी अनजान आदमी की इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह प्रधानमंत्री के इतने करीब पहुंच पाए।वहीं विनम्र निधि को रोकने की कोशिश इसलिए नहीं कर रहा था क्योंकि अगर उसने रोका तो वह लोग उसे पकड़ लेंगे। 
    
    गाड़ियों का काफिला सड़क पर बढ चला। यह काफिला अब आगे चलकर प्रधानमंत्री के ऑफिस पर ही जाकर रुकेगा। गाड़ी के अंदर निधि युसूफ और विनम्र सीट के एक तरफ थे जबकि प्रधानमंत्री ठीक उनके सामने वाली सीट पर। उनके साथ के बाकी दो आदमी प्रधानमंत्री के अगल-बगल बैठे थे। गाड़ी काफी लंबी थी पर इसके बावजूद उसके अंदर सिर्फ 6 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। एक सीट ड्राइवर के पास खाली थी, जहां बैठने वाले व्यक्ति ड्राइवर और उसकी गतिविधियों पर नजर रखता था। ड्राइवर को आदेश होते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, प्रधानमंत्री की गाड़ी कभी भी रास्ते में नहीं रुकनी चाहिए।
    
    गाड़ी रास्ते पर आगे चलीं जा रहीं थी। रास्ते में ही प्रधानमंत्री ने युसुफ से आगे की बातें शुरू कर दी।
    
    "और बताओ यूसुफ.... काम कैसा चल रहा है। साइंटिस्ट के एक्सपेरिमेंट काम आएंगे भी या नहीं" लुईस इल्लल्लाह ने साइंटिस्ट के कामकाज को लेकर अपनी बात शुरू की। 
    
    "जी सर!! सब कुछ सही चल रहा है, उसने एडवांस हथियार बनाना शुरू कर दिया है वह भी उच्च स्तर के....अगर वह अपनी कला का इसी ढंग से प्रयोग करता रहा तो हमें विश्व विजेता बनने से कोई नहीं रोक सकता"
    
    "बहुत खूब" प्रधानमंत्री ने मुस्कुराकर एक खुशी वाली मुस्कान दिखाई। "और विनम्र.. तुम बताओ .. तुम्हारा काम कैसा चल रहा है... मैंने तुम्हें जो थंडर लाइन ढूंढने का काम दिया था वह हुआ या नहीं" प्रधानमंत्री ने विनम्र से पूछा।
    
    विनम्र दुविधा में पड़ गया, आखिर वह इस सवाल का क्या जवाब दें, अब तो वह चाह कर भी थंडर लाइन उन्हें नहीं दे सकता था। उसने जवाब दिया "बस सर, कुछ दिन और...."
    
    प्रधानमंत्री ने उसे भी एक भीनी सी मुस्कान दिखाई और फिर वह निधि की तरफ देखने लगे। इससे पहले उन्होंने निधि को नहीं देखा था इसलिए निधि को देखकर उन्होंने पूछा "और आप मोहतरमा!! आपका क्या परिचय हैं"
    
    विनम्र यह सुनते ही बीच में बोल पड़ा। "यह मेरे साथ आई है, स्पेशल बॉडीगार्ड है...."
    
    "ओह" प्रधानमंत्री विनम्र की तरफ देख कर बोले। "इंशा अल्लाह.... आजकल औरतें भी देश की सेवा में अपना अच्छा खासा योगदान दे रही है" और फिर उन्होंने निधि की तरफ देखकर उसे भी एक हल्की मुस्कान दी। "तुम्हारे पापा क्या करते थे" उन्होंने निधि से पूछा।
    
    "जी वो भी आर्मी में थे" निधि ने तुरंत बिना किसी हिचकिचाहट के जवाब दे दिया।
    
    "कौन सी पोस्ट...." लेकिन बीच में ही युसुफ बोल पड़ा। हालांकि किसी को शक नहीं हुआ था, और यह जो सवाल पूछे जा रहे थे वह सामान्य थे। पर अगर यहां निधि किसी भी तरह की गलती करती हैं तो संभव था, वह आसानी से पकड़ी जाएगी। निधि यूसुफ के सवाल पर उसकी तरफ मुड़ी और जवाब दिया "उनकी कोई पोस्ट नहीं थी..... वह सिर्फ एक सोल्जर थे"
    
    "क्या बात है!!" प्रधानमंत्री यह सुनकर और खुश हो गए "एक सोल्जर की बेटी होकर तुमने अपनी लगन और मेहनत से कितनी तरक्की की... माशा अल्लाह.... भगवान तुम्हें लंबी उम्र दे"
    
    इसके बाद आगे कोई सवाल जवाब नहीं हुआ। कुछ देर तक गाड़ी में सन्नाटा छाया रहा। प्रधानमंत्री अपने साथ के लोगों से हल्की फुल्की बातें करने लगें, देश की अर्थव्यवस्था और बदलते हालातों को लेकर। लेकिन अचानक उनके फोन पर एक मैसेज आया।
    
    प्रधानमंत्री ने तुरंत उस मैसेज की तरफ देखा और फिर गाड़ी के साथ वाले ड्राइवर को वायरलेस पर मैसेज दिया "अरे सुनो, यह तिरिसका जेल का टावर किस तरफ है..."
    
    "जी सर यही पास में है" ड्राइवर के साथ वाले आदमी ने जवाब दिया।
    
    "अच्छा ऐसे करो.... गाड़ी उस तरफ घुमा लो" प्रधानमंत्री ने उसे आदेश दिया। निधि और विनम्र यह सुनकर सख्ते में आ गए। जरूर फोन पर आने वाला मैसेज वकार अहमद का होगा, और उसी ने प्रधानमंत्री से संपर्क कर उन्हें वहां आने के लिए कहा होगा। विनम्र ने निधि पर रखने वाली नजर और तीखी कर दी। अब यहां से उसे हर पल सावधानी रखना जरूरी था.....। प्रधानमंत्री की गाड़ी घूमने के साथ-साथ उनके गाड़ी को दूसरा काफिला भी घूम गया। सब अब तिरिसका जेल नाम की जगह की ओर जा रहे थे। प्रधानमंत्री के काफिले में चलने वाली कुल गाड़ियों की संख्या छह थी। एक हेलीकॉप्टर भी था जो उन गाड़ियों के ऊपर उड़ रहा था।
    
    निधि गहरी सांस लेकर खुद को नए हालातों के लिए तैयार करने लगी, आसपास धूल मिट्टी तो उड़ ही रही थी। निधि ने हल्के से खांसने  का बहाना किया और मुंह पर रुमाल बांध लिया। वैसे धूल मिट्टी कांच के बाहर उड़ रही थी पर वह काफी ज्यादा थी, जिस वजह से ऐसे प्रतीत हो रहा था जैसे वह अंदर आ रही है। निधि ने इस स्थिति का फायदा उठाया। जल्द ही गाड़ी प्रधानमंत्री के बताए पते पर थी।  गाड़ी के बाहर रुकते ही एक आदमी कंबल ओढ़े तेजी से उनकी तरफ आने लगा। उसे आता देख पीछे की गाड़ियों से लोग उतरे और तुरंत प्रधानमंत्री की गाड़ी को घेर लिया। लेकिन अंदर से प्रधानमंत्री बोल पड़े "आने दो आने दो.... उसे आने दो। वह अपना ही आदमी है" प्रधानमंत्री के इस आदेश के बाद कुछ लोगों ने उसकी तलाशी ली और उसका कंबल लेकर रख लिया। फिर उन्हें प्रधानमंत्री की गाड़ी के अंदर जाने दिया। वह वकार अहमद ही था। गाड़ी के अंदर जाते ही उसने प्रधानमंत्री को असलाम वालेकुम कहा और ठीक विनम्र के बगल में बैठ गया। गाड़ी फिर से चल पड़ी। अंदर एक-एक कर उसने बाकी के लोगों को भी असलाम किया..... निधि को भी। पर निधि का चेहरा ढका हुआ था जिस वजह से वह उसे पहचान नहीं पाया। वैसे भी उसके दिमाग में निधि के गाड़ी में होने का विचार बिल्कुल नहीं था। वकार अहमद ने गाड़ी में कुछ देर सांस ली और फिर वह प्रधानमंत्री की तरफ देखकर बोले।
    
    "मुबारक हो मेरे आका, आपको जिस चीज की तलाश थी वह मिल चुकी है"
    
    "क्या" यह सुनकर प्रधानमंत्री की आंखों में एक अलग ही चमक आ गई। वहीं निधि और विनम्र इसके उल्ट, उनकी आंखों की चमक क्षीण पड़ गई।
    
    "हां मेरे आका.... मुझे थंडर लाइसं मिल चुकी है" वकार अहमद ने अपनी जेब में हाथ डाला और मोबाइल निकाल लिया।
    
    "यह तो बहुत खुशी की बात है.... तुमने आज मेरा दिल खुश कर दिया वकार "  प्रधानमंत्री ने अपने दोनों हाथ हवा में फैलाकर एक अलग ही अंदाज दिखाया। विनम्र ने अपने हाथ की मूठियां भींच ली, लेकिन वकार अहमद के लिए नहीं बल्कि निधि के लिए। निधि जरूर यहां पर कोई कदम उठाएगी। वकार अहमद ने फोन निकाला और उसे प्रधानमंत्री की तरफ बढ़ा दिया.....प्रधानमंत्री ने अपना हाथ फोन लेने के लिए आगे बढ़ाया ...लेकिन बीच में गाड़ी को एक झटका लगा और फोन नीचे गिर गया।
    
    निधि और विनम्र दोनों एक साथ फोन को उठाने के लिए नीचे झुके, लेकिन उनके साथ साथ वकार अहमद भी नीचे झुक चुका था। तीनों नीचे झुके हुए थे... और तीनों के हाथ एक साथ फोन की तरफ थे। निधि ने तेजी दिखाई और फोन उठा लिया। पर इसी दौरान उसके चेहरे का रुमाल उतर गया। वकार अहमद ने निधि की शक्ल देखी और वह देखते ही पहचान गया कि वह निधि है, उसके मुंह से यकायक निकला .... "तुम और यहां....!!!"
    
    उसके आश्चर्य की सीमा नहीं थी। हालात हद से बाहर हो चुके थे......। निधी ने फोन तुरंत अपने कब्जे में लिया और रिवॉल्वर निकालकर उस पर तान दी। विनम्र ने भी तुरंत अपनी रिवाल्वर निकाली और उसे निधि की तरफ कर दिया। युसूफ और प्रधानमंत्री यह सब देख रहे थे, उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था कि आखिर हो क्या रहा है। प्रधानमंत्री ने पूछा "यह सब क्या है?? और तुम लोग यह क्या कर रहे हो"
    
    निधि का पिस्तौल वकार अहमद की तरफ था। विनम्र का निधि की तरफ.... वकार अहमद बोला "यह इंडिया की खुफिया एजेंट है.... और यहां आप को मारने के लिए आई है" यह सुनते ही युसूफ और प्रधानमंत्री के बगल के लोग  तुरंत सख्ते में आए और प्रधानमंत्री के इर्द-गिर्द हाथों का घेरा बना लिया।
    
    "यह तुम क्या कह रहे हो" युसुफ अपने हाथ प्रधानमंत्री की करीब रखते हुए बोला। "यह तो विनम्र के साथ काम करती है"
    
    "झूठ बोल रही है ये" वकार अहमद ने तुरंत जवाब दिया "और विनम्र भी झूठा है, वह तो खुद इंडिया का एजेंट है"
    
    यह सुनकर यूसुफ की आंखें और चुधिंया गई। उसे इस बात का नहीं पता था कि विनम्र भी इंडिया का एजेंट है। वह बड़ी-बड़ी आंखों से विनम्र की तरफ देखने लगा।
    
    "यह सच नहीं है..." विनम्र ने वकार अहमद की बात का जवाब दिया। "मेरे लिए सीरिया से बढ़कर कोई देश नहीं...मेरा दिल जब भी धड़का है, सिर्फ और सिर्फ सीरिया के लिए धड़का है.....ना ही सीरिया से कोई बढ़कर है और ना ही उसे कोई लजीज..."
    
    "हम अच्छे से जानते थे" युसुफ ने एक संतुष्टि वाली सांस ली और फिर निधि की तरफ देखने लगा। "लेकिन मेरे लिए ऐसा नहीं है...." निधि बोली " हां... में इंडिया की एजेंट हूं...." उसने जवाब दिया और रिवाल्वर पर अपनी पकड़ और तेज कर ली। जवाब में विनम्र ने भी रिवाल्वर की पकड़ तेज करते हुए निधि को बता दिया, उसे यहां वह किसी भी तरह का कदम उठाने नहीं देगा।
    

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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

08-Dec-2021 09:23 PM

Nice..Story sr👌👌

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Zaifi khan

30-Nov-2021 07:34 PM

Nice part

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BhaRti YaDav ✍️

29-Jul-2021 04:29 PM

Nice

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